राष्ट्रीय शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है?
भारत के इतिहास में पांच सितंबर की तारीख का एक खास महत्व है। इसी दिन देश के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था और उन्हीं के सम्मान में इस दिन को "शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है। पांच सितंबर 1888 को तमिलनाडु में जन्मे डॉ. राधाकृष्णन को भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद् और महान दार्शनिक के तौर पर जाना जाता है।
पूरे देश को अपनी विद्वता से अभिभूत करने वाले डॉ. राधाकृष्णन को 1954 में भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से अलंकृत किया था जबकि 1931 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 'सर' (Sir) की उपाधि से सम्मानित किया था।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के चित्तूर जिले में 1888 में हुआ जो 1960 तक आंध्र प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा लूथर मिशन स्कूल तिरुपति में हुई। इसके बाद 4 साल उन्होंने वेल्लोर में पढ़ाई की उच्च शिक्षा उन्होंने क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास से हासिल की। मनोविज्ञान इतिहास और गणित में उच्च प्राप्तांक के लिए उन्हें सम्मानित किया गया। दर्शनशास्त्र में उन्होंने M.A. किया। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने स्वामी विवेकानंद एवं अन्य महान विचारकों का अध्ययन कर लिया था। उन्होंने हिंदी और संस्कृत के साथ ही वेदों और उपनिषदों का भी अध्ययन किया। आजीविका के लिए वह बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाया करते थे।1909 में 21 वर्ष की उम्र में उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज के दर्शन शास्त्र विभाग में जूनियर लेक्चरर के तौर पर शिक्षक जीवन की शुरुआत की।
डॉ राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है अतः विश्व को एक इकाई के रूप में मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए। उन्होंने अपने छात्रों को उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने की प्रेरणा दी।
शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रत्येक वर्ष भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कृत भी किया जाता है।
➡️ शिक्षा के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण पद जिसको श्री राधाकृष्णन ने सुशोभित किया 👇
- सन् 1931 से 36 तक आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे।
- कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया।
- ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में 1936 से 1952 तक प्राध्यापक रहे।
- सन् 1939 से 48 तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।
- 1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर रहे।
- सोवियत रूस में राजदूत और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि भी रहे।
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