ज्ञानवापी मस्जिद : सुनवाई पूरी फैसला सुरक्षित
- 12 सितंबर को कोर्ट सुनाएगी फैसला
- वाराणसी में प्राचीन ज्ञानवापी मस्जिदमें श्रृंगार गौरी की पूजा की मांग वाले मुक़दमे की मेरिट को लेकर चल रही सुनवाई वाराणसी ज़िला जज की अदालत में कल बुधवार को पूरी हो गई। अब 12 सितंबर को अदालत इस पर फैसला सुनाएगी कि मामले की आगे सुनवाई जारी रहेगी या नहीं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वाराणसी के जिला जज की अदालत में केस की मेरिट पर सुनवाई में हिन्दू और मुस्लिम पक्ष की ओर से दलीलें पेश की गईं।
मस्जिद पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की बहस इस बात पर केंद्रित रही कि देश की आजादी के दिन ज्ञानवापी मस्जिद का जो धार्मिक स्वरूप था, वह आज भी कायम है। और प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट के तहत उसका धार्मिक स्वरूप अब बदला नहीं जा सकता है। ऐसे में श्रृंगार गौरी केस मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। लिहाजा ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित मसले की सुनवाई का अधिकार सिविल कोर्ट को नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड को है।
इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता शमीम अहमद ने कहा कि 1942 में ही स्पष्ट हो गया था कि आराजी 9130 में मस्जिद वक्फ सम्पत्ति है। इस बाबत 1944 में गजट भी जारी हुआ। 1936 के दीन मोहम्मद केस के निर्णय में कहा गया है कि यह मस्जिद औरंगजेब के जमाने के पहले से है। विशेष उपासना स्थल कानून 1991 में स्पष्ट है कि 15 अगस्त 1947 के बाद जो धर्मस्थल जिस रूप में होगा, उसी रूप में रहेगा । हिन्दू पक्ष वक्फ बोर्ड में दर्ज आलमगीर मस्जिद को धरहरा माधव बिंदु बता रहे हैं, वह गलत है। यह मस्जिद वक्फ बोर्ड में 221 पर दर्ज है और ज्ञानवापी 100 नंबर पर दर्ज है।
अंजुमन के वकीलों की दलीलों के बाद हिन्दू पक्ष की चार महिला वादियों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने तर्क देते हुए कहा कि कोर्ट में दाखिल 1944 का गजट फर्जी और कोर्ट को गुमराह करने वाला है। यह गजट आलमगीर मस्जिद के लिए है, जो धरहरा बिंदु माधव मन्दिर है। इससे ज्ञानवापी का लेना देना नहीं है। यह मस्जिद भी हिन्दू मन्दिर तोड़कर मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने बनवाई थी। इसे ज्ञानवापी मस्जिद कहना कोर्ट को गुमराह करने के समान है । वादिनी राखी सिंह की ओर से अधिवक्ता मान बहादुर सिंह ने कहा कि अंजुमन इंतजामिया ने 1291 फसली वर्ष का जो खसरा पेश किया है वह स्वामित्व का प्रमाणपत्र नहीं है।
इस मुक़दमे में अदालत की कार्यवाही पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञ का कहना हैं कि हिन्दू पक्ष मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने का कोई मज़बूत दस्तावेज़ी सबूत प्रस्तुत नही कर सका। हिन्दू पक्ष के वकीलों की बहस मुस्लिम पक्ष के वकीलों की दलीलों को नकारने पर ही केंद्रित रही।
Comments
Post a Comment