क्या वाराणसी में कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या के लिए प्रशासन ज़िम्मेदार है?
क्या वाराणसी में कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या के लिए प्रशासन ज़िम्मेदार है?
- क्या सड़क के एक पटरी की दुकानें alternate day और कम समय के लिए खोले जाने से होती है बाज़ारों में भीड़?
- क्या जुर्माना वसूली से नियंत्रित होगा कोरोना?
वाराणसी में पिछले एक सप्ताह से अचानक कोरोना संक्रमित मरीज़ों की गिनती में उछाल आ गया है। और प्रतिदिन ये संख्या अर्धशतक बनाते हुए शतक मारने का प्रयत्न करती हुई सोमवार को उसमे कामयाब भी हो गयी जब संक्रमितों का आंकड़ा 115 पर पहुंच गया जबकि मंगलवार और बुधवार को ये नर्वस नाईन्टीज का शिकार होकर क्रमशः 93 व 97 पर सीमित रह गया। गुरुवार 16 जुलाई से बुधवार 22 जुलाई तक ज़िले में कुल 597 कोरोना पॉजिटिव मरीज़ पाए गए। क्या सड़क की पटरियों की दुकानें alternate day और कम समय के लिए खोलने से बाज़ारों में हो रही भीड़ है संक्रमितों की बढ़ती संख्या का कारण?
इस समय पूरे उत्तर प्रदेश में पांच दिन का सप्ताह घोषित कर दिया गया है। और वाराणसी के ज़िला प्रशासन ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और प्रदेश सरकार की अनलॉक वन की गाइडलाइंस के बरख़िलाफ़ ज़िले में सड़क की दोनों पटरियों की दुकानों को बारी बारी से खोलने का फरमान जारी किया है। जिससे एक पटरी की दुकान सप्ताह में दो दिन और दूसरे पटरी की सप्ताह में तीन दिन खुलती है वो भी दस से चार बजे तक केवल छः घण्टे के लिए। हर सप्ताह इस क्रम को उलट कर दुकानदारों की नाराज़गी को शांत किया जा रहा है। इस प्रकार देखा जाए तो पूरे महीने में साठ घंटे एक दुकान खुलती है जिसको साधारण दिनों से तुलना की जाए तो एक दुकान महीने में केवल छः दिन खुलती है।
क्या है ग्राहकों और नागरिकों का पक्ष
नागरिकों का कहना है कि लगातार चार महीने से लॉक डाउन के चलते अब ज़रूरी सामानों बिना जीवनयापन में दिक्कत हो रही है और खरीदारी करने के लिए निकलना मजबूरी है। सभी सामानों की दुकानें तो हजारों हैं लेकिन हर ग्राहक की अलग अलग सामानों के लिए अलग अलग और फिक्स दुकानें हैं जहां से वे सामान खरीदते हैं और ये दुकानें सड़क के दोनों पटरियों पर स्थित हैं। ऐसी सूरत में जबकि प्रशासन के तुग़लकी फरमान से एक ही पटरी की दुकानें खुलती हैं और वह भी काफी कम समय के लिए तो एक दिन बाज़ार आने पर सभी सामान नही मिल पाते और दूसरे दिन दुबारा बाजार आना पड़ता है जिससे बाज़ारों में भीड़ होना स्वाभाविक है। अगर दोनों पटरियों की दुकानें खुलती तो उन्हें दो दिन बाज़ार न आना पड़ता और भीड़भाड़ को रोका जा सकता था।
क्या एक पटरी की दुकानें बंद रहने से खुलने वाली दुकानों की बिक्री बढ़ी?
इस सवाल पर दुकानदारों का जवाब नही में है। उनका कहना है कि सभी सामानों के बहुत सारे ब्रांड हैं और ग्राहकों की अलग अलग पसंद है। इसलिए जो नए ग्राहक दुकान पर आते भी हैं वे अपनी पसंद का ब्रांड न मिलने की वजह से सामान नही खरीदते हैं। एक दुकानदार ने ये भी बताया कि पुराने ग्राहकों की उधारी भी चलती है जिसके कारण भी ग्राहक नई दुकान से सामान नही लेते और दूसरे पटरी की अपनी दुकान खुलने वाले दिन उनको दुबारा बाज़ार आना पड़ता है जिससे भीड़भाड़ अधिक हो रही है।
क्या केवल मास्क न लगाने वालों से जुर्माना वसूली कर नियंत्रित की जा सकती है संक्रमितों की संख्या?
कोरोना लॉक डाउन के चलते जनता की आमदनी के सारे श्रोत बन्द हैं। निजी कंपनियों ने कर्मचारियों को यह कहते हुए छुट्टी देदी है कि हालात दुरुस्त होने पर दोबारा से रख लेंगे वहीं सरकार अपने आय के सारे श्रोत खुले रखने के बाद भी अनुचित वसूली के ज़रिए जनता के जेब पर डाका डाल रही है। उच्चाधिकारियों के निर्देश पर पुलिस प्रशासन प्रतिदिन हज़ारों व्यक्तियों से हेलमेट और मास्क न लगाने के नाम पर लाखों रुपया जुर्माना वसूलने में व्यस्त है। कहा जा रहा है कि प्रत्येक थाना व चौकी को जुर्माना वसूली का टारगेट दिया गया है यही वजह है कि आदमी गमछे से फेस कवर करके निकलता है और दुकान या ठेले पर सामानों के बारे में पूछताछ के लिए ज़रा सा गमछा हटाता है कि ताक में खड़े पुलिस वाले पहुंच कर मास्क न लगाने का चालान काट कर जुर्माना वसूल लेते हैं। प्रशासन द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार 16 जुलाई गुरुवार से 21 जुलाई मंगलवार तक बीते छः दिनों में 22,494 लोगों से मास्क न लगाने के कारण ₹18,89,500/ रुपये वसूले गए जबकि हेलमेट न लगने के कारण हज़ारों लोगों से लाखों रुपये जुर्माने अलग से वसूले गए हैं साथ ही सैकड़ों लोगों पर महामारी एक्ट की विभिन्न धाराओं में मुकदमा भी पंजीकृत किया गया है। बावजूद इसके बाज़ारों से भीड़ कम होने का नाम नही ले रही।
निष्कर्ष
ये एक कड़वी सच्चाई है कि कोरोना काल मे प्रशासन ने प्रबुद्ध जनों के साथ DM स्तर से लेकर थाने और चौकी स्तर तक मीटिंगें तो कीं लेकिन उसमें उनको केवल अपने आदेशों का पालन करने और कराने का पाबंद किया है। लॉक डाउन तक तो ये समझा जा सकता है लेकिन अनलॉक वन की प्रक्रिया में व्यापारियों और प्रबुद्धजनों को दरकिनार कर अव्यवहारिक निर्णय लेने से ही बाज़ारों में भीड़ को नियंत्रित करने में कामयाबी नही मिल पा रही है। और जिस दुकान पर अधिक भीड़ लग रही उसको पाबंद करने और जुर्माना वसूल कर प्रशासन अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्ति समझ रहा है। इसलिए प्रशासन को चाहिए कि प्रबुद्धजनों और व्यापारियों से वृहद वार्ता करके बाज़ारों और दुकानों को खोलने का ऐसा कार्यक्रम बनाये कि एक दिन निकलने पर ही ग्राहक अपनी जरूरत के समस्त सामानों की खरीदारी कर सके।
Pooja asthalon ko kholiye, aur ap aur hum sab milkar apne eishwar se prarthna Karen is mahamari se chhutkara pane k liye, eishwar bada dayaloo hai aur eishwar hi ise door karega, doctor.sarkar. prashashan, W H O Sabki dekh li janta ne, koi nijat nahi dila saka, hey eishwar ham par daya kana aur ab is corona se hume nijat dila...
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने। हम आपकी बात से सहमत भी हैं और इन मांगों का समर्थन भी करते हैं कि पूजा स्थल पर पांच व्यक्तियों की पाबन्दी हटाई जाए। इसलिए कि ये पाबंदी केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अनलॉक वन के दिशानिर्देशों के विरुद्ध है। और ये विडंबना ही है कि ये पाबंदी सिर्फ उत्तर प्रदेश में है जहाँ एक धार्मिक व्यक्ति सत्ताप्रमुख है।
Deleteशराब के दुकानों और बाज़ारों में भीड़ लग सकती है लेकिन पूजा स्थलों में जहाँ सोशल डिस्टेंस की पाबंदी करते हुए सैकड़ों लोग ईश्वर की आराधना और इबादत कर सकते हैं वहां पांच आदमियों की पाबंदी लगा कर देवालयों को सुनसान करके ईश्वर को नाराज़ करके कोरोना पर विजय प्राप्त करने के सपने देखे जा रहे हैं।