लव जिहाद क़ानून के खिलाफ जमीअत उलेमा हिन्द की पक्षकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट में मंज़ूर
सुप्रीम कोर्ट ने लव जिहाद क़ानून को चैलेंज करने वाली याचिकाओं में जमीअत उलेमा हिन्द को बतौर पक्षकार मान लिया है। इससे पहले की सुनवाई पर शीर्ष अदालत ने केंद्रीय और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। सिटीज़न फ़ॉर पीस एंड जस्टिस व अन्य संगठनों की जानिब से लव जिहाद के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर 17 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने जमीअत के वकील ऑन रिकॉर्ड एजाज़ मक़बूल से पूछा कि इस केस में जमीअत उलेमा हिन्द का क्या हित है? और वह क्यों पक्षकार बनना चाहते हैं? जिस पर एडवोकेट एजाज़ मक़बूल ने कहा कहा कि जमीअत उलेमा हिन्द भारतीय मुसलमानों की प्राचीन संस्था है। और भारतीय मुसलमानों के धार्मिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक हितों की सुरक्षा उसके बुनियादी उद्देश्यों में शामिल है। उन्होंने चीफ जस्टिस ए एस बोबडे को बताया कि लव जिहाद कानून के तहत बड़ी तादाद में मुसलमानों को गिरफ्तार किया जा चुका है, और यह सिलसिला अभी जारी है। इसलिए इस असंवैधानिक कानून को खत्म करने के लिए दाखिल पेटिशन में जमीअत पक्षकार बनना चाहती है ताकि वह अदालत में अपना पक्ष रख सके। एडवोकेट एजाज़ मक